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Title: वर्धा नदी तट पर उमड़ी आस्था की भीड़, छठ व्रतियों ने दिया डूबते सूर्य को अर्घ्य
Author: Aamacha Vidarbha
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सूर्य उपासना के महोत्सव में डूबा राजुरा-बल्लारपुर क्षेत्र, भक्तिमय माहौल पवित्र अर्घ्य संग गूंजे छठी मइया के जयकारे आमचा विदर्भ - दीपक शर्मा...
सूर्य उपासना के महोत्सव में डूबा राजुरा-बल्लारपुर क्षेत्र, भक्तिमय माहौल
पवित्र अर्घ्य संग गूंजे छठी मइया के जयकारे
आमचा विदर्भ - दीपक शर्मा
राजुरा/बल्लारपुर (दि. 27 अक्तूबर 2025) -
        लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा पूरे श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। दूसरे दिन रविवार को व्रतियों ने दिनभर निर्जल रह कर शाम को खरना विधि पूरी की, जिसके साथ ही 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास प्रारंभ हो गया। सोमवार को राजुरा–बल्लारपुर मार्ग स्थित वर्धा नदी के तट सहित आसपास के घाटों पर व्रती महिला एवं पुरुष बड़ी संख्या में एकत्र होकर अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया। वर्धा नदी के तट पर सोमवार दोपहर से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़नी शुरू हो गई थी। राजुरा, रामपुर और बल्लारपुर क्षेत्र से सैकड़ों की संख्या में व्रती एवं श्रद्धालु नदी तट पर पहुंचे। इस दौरान नदी में पर्याप्त जल स्तर को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।
        इसी बीच, महामार्ग निर्माण कार्य के चलते मार्ग संकरा होने से शाम के समय अत्यधिक भीड़ बढ़ गई, जिसके कारण वर्धा नदी क्षेत्र के पास वाहनों का आवागमन कई मिनटों तक बाधित हो गया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए यातायात पुलिस द्वारा तत्काल मोर्चा संभाला गया और कुछ ही देर में आवागमन को सुचारू कर दिया गया। चार दिवसीय इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसके बाद खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। मंगलवार की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ ही व्रतियों का अनुष्ठान विधिवत पूर्ण होगा।
        सनातन परंपरा में पंचदेवों में भगवान सूर्य को सौभाग्य, आत्मबल और आरोग्य का देवता माना गया है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य नवग्रहों के राजा माने जाते हैं, जिनकी कृपा से जीवन में सम्मान, उन्नति और उच्च पद की प्राप्ति होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला यह पर्व शुद्धता, संयम और आत्मसंयम का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार छठी मइया ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं। विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में संतान की रक्षा व परिवार की समृद्धि के लिए यह पूजन किया जाता है। विश्वास है कि छठी मइया संतानों की रक्षा करती हैं तथा परिवार के जीवन में उसी प्रकार प्रकाश लाती हैं, जैसे सूर्य धरती को जीवन देता है।

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